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मुलायम सिंह यादव यदि दूध के धुले नहीं हैं तो अमिताभ ठाकुर भी चरणामृत के नहाये नहीं हैं

केजरीवाल से बड़ा कलाकार है अमिताभ ठाकुर।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
अमिताभ ठाकुर का सच छह वर्ष पूर्व लिख चुका हूं।
केजरीवाल की टक्कर का खिलाड़ी और उससे बड़ा कलाकार है अमिताभ ठाकुर।
उत्तरप्रदेश पुलिस से मुख्यमंत्री योगी द्वारा खदेड़ा गया पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर आजकल सोशल मीडिया में अपने पक्ष में प्रायोजित हुल्लड़ और हुड़दंग करा रहा है। 6 वर्ष पूर्व मुलायम सिंह यादव की नाराजगी के परिणामस्वरूप इसके विरुद्ध जब FIR दर्ज हुई थी इसने तब भी अपने पक्ष में सोशल मीडिया में प्रायोजित हुल्लड़ और हुड़दंग कराया था। मैंने उस समय भी 12 जुलाई 2015 को अमिताभ ठाकुर की वास्तविकता का उल्लेख अपनी पोस्ट में किया था। आज उसी पोस्ट को यहां ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रहा हूं। इसे पढ़कर आपके मन में अमिताभ ठाकुर को लेकर उपजे सभी भ्रम और सवाल समाप्त हो जाएंगे। संयोग से उस पोस्ट में मैंने उन शैलेन्द्र कुमार सिंह का भी उल्लेख किया था, जो कुख्यात माफिया सरगना मुख्तार अंसारी के खिलाफ लड़ी गयी अपनी जंग के कारण आजकल चर्चा में हैं।
यह है छह वर्ष पहले लिखी गयी मेरी वह पोस्ट…
अमिताभ ठाकुर के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा तो बिलकुल झूठा और सरकारी षड्यंत्र मात्र है. लेकिन सच यह भी है कि मुलायम सिंह यादव यदि दूध के धुले नहीं हैं तो अमिताभ ठाकुर भी चरणामृत के नहाये नहीं हैं.
कई मित्र कल से पूछ रहे हैं कि यूपी में IPS अमिताभ ठाकुर को मुलायम की धमकी पर कुछ क्यों नहीं लिखा.? तो उनको मेरा उत्तर है कि, महाभ्रष्ट कांग्रेस शासन के विरोध की अंधी दौड़ में एक “केजरीवाल” पैदा करने की जो भयंकर भूल आज से 4 साल पहले दिल्ली में हुई थी उसे अब लखनऊ में मैं दोहराना नहीं चाहता.
फ़रवरी 2004 में तेज तर्रार ईमानदार तेवरों वाले एक नौजवान पुलिस उपाधीक्षक(डिप्टी एसपी) ने एक कुख्यात अपराधी को सेना के एक भगोड़े से लाइट मशीनगन खरीदते हुए लाइट मशीनगन सहित रंगे हाथों पकड़ा था. पुलिस उपाधीक्षक(डिप्टी एसपी) ने इस पूरे केस की अपनी पड़ताल में कुख्यात बाहुबली सरगना विधायक मुख़्तार अंसारी को इस पूरे केस का सूत्रधार सरगना पाया था. परिणामस्वरूप उन्होंने मुख़्तार के विरुद्ध पोटा के तहत कार्रवाई कर मुख़्तार की फिरफ्तारी की अनुमति तत्कालीन सपा सरकार से मांगी थी. अनुमति देने के बजाय उन्हें उस केस से मुख़्तार का नाम हटा देने का आदेश दिया गया था, जिसे मानने से उन्होंने इनकार कर दिया था. इसके जवाब में सरकार ने वाराणसी स्थित पुलिस की उस स्पेशल टॉस्क फ़ोर्स(STF) का ऑफिस ही खत्म कर दिया था जिस STF में वह डिप्टी एसपी तैनात था. इसके अलावा वाराणसी जोन और रेंज के आईजी, डीआईजी को भी हटा दिया था. इस अत्यंत कठोर और कुटिल सरकारी कार्रवाई के जवाब में उस नौजवान डिप्टी एसपी ने उस सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव के खिलाफ सीधे मोर्चा खोल दिया था और उस केस में मजबूत साक्ष्यों की आधिकारिक लिखापढ़ी कर के मुख़्तार को नामजद करने के बाद अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया था. वो केस आज भी न्यायलय में है उन डिप्टी एसपी से मेरी मुलाक़ात यदाकदा होती रहती है और वो पूर्ण आत्मविश्वास से कहते हैं कि, सरकारी संरक्षण के चलते केस में देर चाहे जितनी की जाए लेकिन जिस दिन फैसला होगा उसदिन मुख़्तार को सजा जरूर होगी क्योंकि मैंने अपनी जाँच के बाद ऐसे दस्तावेज़ी सबूत
आधिकारिक तौर पर जमा कराये हैं जिन्हें नकारना असम्भव होगा और मैं खुद उस केस का प्रमुख गवाह भी हूं. उस नौजवान डिप्टी एसपी का यह इकलौता कारनामा ही नहीं था बल्कि अपने छोटे से कार्यकाल में कई दिग्गज राजनीतिज्ञों से सीधे टकरा कर उन्हें और उनके गुर्गों को जेल भिजवाने के कई अभूतपूर्व कारनामों को उन्होंने अंजाम दिया था.
खेद के साथ कहना पड़ता है कि डिप्टी एसपी नहीं बल्कि आज आईजी की कुर्सी तक पहुँच चुके अमिताभ ठाकुर के नाम के आगे कई तो छोड़िये बल्कि एक भी ऐसा कारनामा नहीं दर्ज़ है जहां उन्होंने अपने पद की शक्ति और अधिकार का प्रयोग कर राजनीति या अपराध जगत के किसी मठाधीश को गिरफ्तार कर के सींखचों के पीछे पहुँचाया हो. हां प्रदेश में किसी भी चर्चित अपराधिक घटना के घटनास्थल का दौरा किसी पुलिस अधिकारी की हैसियत से करने के बजाय व्यक्तिगत रूप से करके मीडिया में सनसनीखेज बयानबाजी करना वो कभी नहीं भूलते.
इसी लखनऊ में हुए लगभग आधा दर्जन अत्यंत जघन्य अपराध जब चर्चित हुए तो चर्चा की उस गंगा में अमिताभ ठाकुर ने अपने बयानों के हाथ जमकर धोये लेकिन समय के साथ उन अपराधों के विरुद्ध कार्रवाई के नाम पर उड़ाई गयी धूल का शिकार बने उन अपराधिक घटनाओं के पीड़ितों का हाल सरकार के साथ साथ अमिताभ ठाकुर और उनकी “एक्टिविस्ट”/नेता पत्नी ने भी कभी नहीं पूछा. PIL को धंधा बनाने के लिए IG साहब की नेता/एक्टिविस्ट पत्नी इतनी कुख्यात हो चुकी हैं कि जो PIL केवल एक रू फ़ीस के साथ दायर करने का नियम है उसके लिए IG साहब की नेता/एक्टिविस्ट पत्नी पर न्यायालय ने 25000 रू फ़ीस देने की बंदिश लगाई हुई है.
मुलायम सिंह यादव की उनको धमकी वाला जो ऑडियो आजकल सोशलमीडिया में वाइरल हो रहा है उसमे उनको मुलायम सिंह द्वारा पुरानी घटना की याद दिलाते हुए सुधर जाने की सलाह दी जा रही है, जिसमे मुलायम सिंह द्वारा उनको यह भी याद दिलाया जा रहा हैं कि उसबार तुम्हारे घरवालों की सिफारिश पर तुमको छोड़ दिया था.
अमिताभ ठाकुर को अब यह भी बताना चाहिए कि वो पूरा मामला क्या था.
अंत में उल्लेख कर दूँ कि पिछले लोकसभा चुनाव (2014) में अमिताभ ठाकुर की “एक्टिविस्ट”/नेता पत्नी लखनऊ से AAP का टिकट मांगने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए थीं और आईजी साहब अपनी नेता पत्नी के लिए जमकर लॉबिंग कर रहे थे.
इसीलिए मैं कह रहा हूं कि मुलायम सिंह यादव यदि दूध के धुले नहीं हैं तो अमिताभ ठाकुर भी चरणामृत के नहाये नहीं हैं.
पुनः याद दिला दूं कि उपरोक्त पोस्ट आज नहीं बल्कि 6 वर्ष पूर्व तब लिखी थी जब उत्तरप्रदेश में ना भाजपा की सरकार थी। ना ही योगी जी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)

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