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कुछ दिनों के बाद दाह संस्कार के वक्त भी आम आदमी नाचता हुआ नजर न आने लगे ?

'राही' के व्यंग्य बाण-नाचे आम आदमी

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Positive India:Rajesh Jai Rahi:
आम आदमी अपनी गृहस्थी चलाने के लिए दिन भर नाचता ही रहता है। मगर जब भी कोई उत्सव आता है, चाहे किसी का विवाह हो, जन्मोत्सव हो, सालगिरह हो, पर्व त्योहार हो या फिर कोई कथा-कहानी पूजन ही क्यों न हो वह फिर नाचने लग जाता है। मैं सोच रहा हूँ कुछ दिनों के बाद दाह संस्कार के वक्त भी आम आदमी नाचता हुआ नजर न आने लगे ?

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बहुत सारे नृत्य हैं कत्थक से लेकर कुचिपुड़ी तक, सभी को सीखना पड़ता है मगर सड़कों पर होने वाले इस नाच को सीखने की कोई जरूरत नहीं है। बस कुदिये, उछलिये, यही नाच है। इस नाच पर शोध होना चाहिए।

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विवाह के अवसर पर वर पक्ष खूब नाचता है, आजकल वधू पक्ष भी पीछे नहीं। दूल्हे के दोस्त इस मामले में सबसे आगे रहते हैं, दूल्हे के दोस्तों का नाचना स्वभाविक है एक दोस्त का विवाह हो रहा है अब उसके अनुभवों का लाभ सभी दोस्तों को मिलेगा। आजकल तो दूल्हा भी बार-बार घोड़ी से उतर कर नाचने लगता है उसे यह समझ नहीं आता कि अब तो जीवन-भर पत्नी के इशारों पर नाचना ही है। फिर इतना उतावलापन क्यों ?दूल्हे के नाचने से घोड़ी को बहुत राहत मिलती है। होने वाली पत्नी भी यह सोचकर संतुष्ट हो जाती है कि इसे नचाना क्या मुश्किल है यह तो खुद ही नाच रहा है।

अभी-अभी मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की शादी में शामिल होकर लौटा, क्या बताऊं कितना नाचा दूल्हे के दोस्तों ने। दो घंटे तो दुल्हन की दहलीज पर खपा दिए दूल्हा, उसके दोस्त और घोड़ी को छोड़कर सभी खाना खाने चले गए, दुल्हन के माता-पिता टक-टकी लगाकर होने वाले जमाई को नाचता देखते रहे। लगता है पाँच साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई में नाचना भी खूब सिखाया गया हो।

सताइस वर्ष का दूल्हा क्यों न नाचे? आज तो 25वीं सालगिरह मना रहा दूल्हा भी खूब नाच रहा है। जो जितना नाचे वह पत्नी के प्रति उतना ही वफादार माना जाता है। चेहरे पर बिना कोई शिकन, बिना कोई थकन लिए बस नाचता रहे। अब तो पहले जन्मदिन पर नन्हा बालक नाच लेता है मानो नाचने से बढ़कर कोई प्रतिभा नहीं जिसे प्रदर्शित किया जा सके।
पहले एक नागिन डांस, शादी-विवाह में खूब होता था एक नचैया रुमाल से बीन बना लेता था, दो-तीन लोग नागिन के फन की तरह दोनों हाथ उठाकर रुमाल के इशारे पर झूम कर नाचते थे। उनके सारे कपड़े धूल में लिपट जाते थे। नागिन डांस करने वालों को बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। उनकी खूब खातिरदारी होती थी। आजकल यह विलुप्त हो रहा है इसे भी बचाया जाना चाहिए।

नाच के मामले में साहित्यकार ठीक हैं। मैंने किसी भी साहित्यकार को पुस्तक विमोचन पर नाचते हुए नहीं देखा। मैं न तो नाच का विरोधी हूँ, न शौकीन, मगर आजकल नाच को झूठी शान, प्रतिष्ठा और लगाव से जोड़कर देखा जा रहा है मैं उसका विरोधी हूँ।

साभार:राजेश जैन ‘राही’

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