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किसान आंदोलन

पंजाब के अराजक और हिंसक किसान किसानों के नाम पर धब्बा क्यों हैं?

किसान के नाम पर धब्बा हैं यह किसान। अराजक शक्तियों के हाथ बिके हुए यह लोग देश और समाज का जितना नुकसान करते ही जा रहे हैं। इन को कुचल कर रख देना चाहिए। क़ानून व्यवस्था , देश और समाज के लिए…

छत्तीसगढ़ के 94.7 प्रतिशत किसान “किसान सम्मान निधि” से क्यो हुए बाहर ?

छत्तीसगढ़ को 'धान का कटोरा' कहा जाता है, परन्तु एक और अंतरराष्ट्रीय कहावत भी मशहूर है कि "धान की खेती और गरीबी का चोली दामन का साथ होता है"

गुरु पर्व पर किसानों की ऐतिहासिक जीत: शिअद प्रमुख बादल

पॉजिटिव इंडिया :दिल्ली शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल ने तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की केन्द्र की घोषणा का स्वागत करते हुए शुक्रवार को कहा कि कोई भी सरकार फिर कभी…

जब पीट-पीट कर उसकी गर्दन तोड़ दी गई वह जिंदा था।

बेअदबी! पड़ोस के इलहामी मुल्कों से आयातित शब्द। वैसी ही घृणित बर्बरता, वही वहशीपन। इन भेड़ियों को जब भी मानव रक्त चखने का मन करता है, किसी मासूम मेमने को खींच लेते हैं और बेअदबी का इल्जाम…

ये है लखीमपुर हत्याकांड की पृष्ठभूमि

थारू बुक्सा जनजाति के अनपढ़ ग्रामीणों वनवासियों को एक बोतल शराब देकर उनकी एक एकड़ भूमि का सौदा किस तरह किया गया, इसकी अनेक कहानियां उत्तरप्रदेश के तराई इलाके के लखीमपुर, पीलीभीत, उधमसिंह नगर…

लेकिन लखीमपुर में यह पप्पू आंसू पोंछने में बाजी जीत कर पास हो गया है

आप कहते रहिए राहुल गांधी को पप्पू। लेकिन लखीमपुर में यह पप्पू मृतकों के परिजनों के आंसू पोंछने में बाजी जीत गया है। कह सकते हैं कि पप्पू पास हो गया है , लखीमपुर के पहले राउंड में।

28 तारीख को छत्तीसगढ़ के राजिम में होने वाली है किसानों की महापंचायत

छत्तीसगढ़ में इसी अट्ठाइस तारीख को राजिम में होने जा रही किसान महापंचायत पर न केवल प्रदेश ही नहीं पूरे देश की नजरें टिकी हुई है। इस महापंचायत में राकेश टिकैत, सहित संयुक्त किसान मोर्चा के…

तो आप मशालची बन कर क्यों उपस्थित हैं ?

अगर खेती भी उद्योगपतियों के हाथ जाती है तो बुरा क्या है। खेती को भी किसी उद्योग की तरह लाभदायी बनाना बहुत ज़रूरी है। किसानों को आखिर कब तक भिखारी बनाए रखना चाहते हैं हमारे विपक्षी दल ? राज्य…

क्या ये समाचार चैनल विश्व के उन सत्तावन इस्लामी देशों की धर्मनिरपेक्षता के विषय में…

करनाल में वो तथाकथित किसान भाजपा की बैठक का विरोध कर रहे थे न कि अपनी मांगों के पक्ष में शांतिपूर्ण आंदोलन। क्या कानून का खौफ नहीं होना चाहिए उत्पातियों के जहन में...?

नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठन क्यों है आमने-सामने ?

कोढ़ में खाज की तरह विपक्षी राजनीतिक पार्टियां आगामी राज्यों के तथा केंद्र के चुनावों तक यह कभी नहीं चाहेंगे कि इस मुद्दे का कोई ऐसा सर्वमान्य समाधान निकल आए जिससे कि किसान भी संतुष्ट हो…