सत्ता लोलुप आया राम गया राम दलों पर अंकुश लगना चाहिए
उद्धव ठाकरे ने स्व. बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांत और उनकी गर्जना को ही तार तार कर दिया ।
Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
महाराष्ट्र की उठापटक की वजह से देश व जनता यह भी समझ नही पा रही है कि अब मताधिकार कैसे करे । चुनाव आयोग जनता की खरीद फरोख्त न हो, इसके लिए बड़ा सावधान रहता है । पर निर्वाचन के बाद जन प्रतिनिधि के लिए कोई कानून नही है । वो चाहे तो सिद्धांत के साथ मुकर जाये या फिर उसे जहां से ज्यादा से ज्यादा फायदा हो वो वही रूख कर ले । कोई जवाबदेही नही, इसलिए दल के दल ही बदल जाते है । पहले भी हरियाणा मे भजनलाल ने चोला बदलकर सरकार बदल ली थी । आज महाराष्ट्र मे भी यही हो रहा है । अब तो कौन किससे लड़ रहा है, यह समझ नही आ रहा है । जो लोग एक-दूसरे को फूंटी आंख नही सुहाते थे, वे लोग एक-दूसरे को बडे बडे पुष्प गुच्छ दे रहे है । एक दूसरे के लिए ऐसे समर्पित हो रहे है जैसे एक दूजे के लिए ही बने है ।
बिकने से ज्यादा तकलीफदेही बात यह है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए अपने सिद्धांतो से ही किनारा कर लेते है । यह तो उससे भी बड़ा धोखा है । ऐसे सियासतदानों पर लगाम लगाने की आवश्यकता है । यह तो जनता के साथ ही धोखा है । किस पर विश्वास करे। दुर्भाग्य यह है सभी दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे है । अगर भाजपा ने अजित पवार के साथ 80 घंटे के लिए सरकार बना ली तो उसके भ्रष्टाचार के साथ लड़ने पर संदेह होता है । अस्सी घंटे की सरकार गिर गई पर उसने भाजपा के दामन पर ही दाग लगा दिया । अब वो धुलने से रहा।महाराष्ट्र के इतिहास मे अंकित हो गया ।
वही शिवसेना के हिंदुत्व की उसकी लड़ाई पर ग्रहण लग गया है । स्व. बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांत और उनकी गर्जना को ही तार तार कर दिया गया। जिस मुख्यमंत्री के पद को वे अपने जूती के नीचे रखते थे, उसी मुख्यमंत्री पद के लिए उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व के सिद्धांत से समझौता कर कांग्रेस तथा एनसीपी का दामन थाम लिया । इतिहास गवाह है मातोश्री मे कितना भी बड़ा नेता रहा हो, वो वहां अपनी हाजिरी देने जरूर जाते थे । पर आज मातोश्री से निकलकर मिलने जाने पड़ रहा है । यह बुनियादी फर्क भी राजनीति के जानकार महसूस कर रहे होंगे । आज भले उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन जाए पर वो रसूख और दबदबा खो देंगे जो बगैर मुख्यमंत्री पद लिए उन्हे मिलता । वही केंद्र के सहयोग के बगैर वो अपने लक्ष्य को पूरा करने मे असहाय भी आगे चलकर दिखाई देंगे । निश्चित ही आने वाले दिनो मे कामन मिनीमम प्रोग्राम के बाद भी राजनीतिक विचारधारा का टकराव देश देखेगा । वही कर्नाटक के घटनाक्रम की भी पुनरावृति हो तो भी कोई बड़ी बात नही । कुल मिलाकर किसी भी दल कोई सिद्धांत नही है। ये कभी भी अपने फायदे के लिए सांप्रदायिक कभी धर्मनिरपेक्ष तो कभी भ्रष्टाचार के गोदी मे भी बैठ जाये तो कोई बड़ी बात नही । महाराष्ट्र के महीने भर की राजनीति ने सभी सियासी दल को नंगा कर दिया है और जनता को किंकर्तव्य मूढ की स्थिति मे लाकर खड़ा कर दिया है कि किस पर विश्वास करे ?
अब चुनाव के बाद की भी जवाबदेही तय होने का समय आ गया है । अगर ये जनता को किये गये गठबंधन व सिद्धांत से हटते है तो इन दलो की मान्यता ही रद्द होनी चाहिए । इस तरह के बड़े कदम आयाराम गयाराम पर अंकुश लगायेंगे । अब सरकार और जनता को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा ।
डा.चंद्रकांत रामचंद्र वाघ(यह लेखक के अपने विचार हैं)